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"खिले हुए फूल / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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खिले हुए फूल
 
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नहीं होते हैं मुस्कुराते हुए
 
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होती है
 
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हमारी मर्जी
 
हमारी मर्जी
 
 
उसका मुस्कुराना
 
उसका मुस्कुराना
 
 
जो हम कविता करते हैं
 
जो हम कविता करते हैं
 
 
उनके चेहरे का
 
उनके चेहरे का
 
 
हर शिकन
 
हर शिकन
 
 
नहीं होता प्रताड़ना का संकेत
 
नहीं होता प्रताड़ना का संकेत
 
 
लेकिन हम,
 
लेकिन हम,
 
 
खड़े हो जाते हैं झंडा लेकर
 
खड़े हो जाते हैं झंडा लेकर
 
 
आखिर करें भी दया!
 
आखिर करें भी दया!
 
 
संरक्षक होने का भाव मिटती ही नहीं !!
 
संरक्षक होने का भाव मिटती ही नहीं !!
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23:40, 6 जून 2009 के समय का अवतरण

खिले हुए फूल
नहीं होते हैं मुस्कुराते हुए
होती है
हमारी मर्जी
उसका मुस्कुराना
जो हम कविता करते हैं
उनके चेहरे का
हर शिकन
नहीं होता प्रताड़ना का संकेत
लेकिन हम,
खड़े हो जाते हैं झंडा लेकर
आखिर करें भी दया!
संरक्षक होने का भाव मिटती ही नहीं !!