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"सुन्दर सजाए मंच पर / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
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सुन्दर सजाए मंच पर | सुन्दर सजाए मंच पर | ||
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चौंक रही है रौशनी | चौंक रही है रौशनी | ||
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रंग बिरंगी | रंग बिरंगी | ||
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खचाखच भरा है हॉल | खचाखच भरा है हॉल | ||
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कि प्रस्तुति है | कि प्रस्तुति है | ||
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सुप्रसिद्ध सितारवादिका सुगन्धा दास की | सुप्रसिद्ध सितारवादिका सुगन्धा दास की | ||
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लोग बेसब्र हैं | लोग बेसब्र हैं | ||
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उनकी बेसब्री के अपने अपने कारण हैं | उनकी बेसब्री के अपने अपने कारण हैं | ||
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तरह तरह के लोग | तरह तरह के लोग | ||
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भाँति भाँति की बातें | भाँति भाँति की बातें | ||
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सुगन्धा दास कोई एक. | सुगन्धा दास कोई एक. | ||
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आ चुकी है मंच पर मुस्कुराती हुई | आ चुकी है मंच पर मुस्कुराती हुई | ||
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निहाल हो चुकी है भीड़ | निहाल हो चुकी है भीड़ | ||
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निढ़ाल हो चुकी है भीड़ | निढ़ाल हो चुकी है भीड़ | ||
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गज़ब की मोहिनी शक्ति है सुगन्धा दास में | गज़ब की मोहिनी शक्ति है सुगन्धा दास में | ||
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बता रखा है पहले ही | बता रखा है पहले ही | ||
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कला समीक्षकों ने | कला समीक्षकों ने | ||
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चौंकती रौशनी में नहीं पहुँच रही है | चौंकती रौशनी में नहीं पहुँच रही है | ||
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कद्रदानों की नज़र ठीक ठीक | कद्रदानों की नज़र ठीक ठीक | ||
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फिर भी आभास है | फिर भी आभास है | ||
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अपना अपना संचित विश्वास है | अपना अपना संचित विश्वास है | ||
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तरह तरह के देखनेवाले | तरह तरह के देखनेवाले | ||
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हो रहे हैं संतुष्ट अकेले अकेले | हो रहे हैं संतुष्ट अकेले अकेले | ||
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सचमुच गज़ब ही चीज़ है | सचमुच गज़ब ही चीज़ है | ||
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सुगन्धा दास सितारवादिका सुप्रसिद्ध ! | सुगन्धा दास सितारवादिका सुप्रसिद्ध ! | ||
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23:42, 6 जून 2009 के समय का अवतरण
सुन्दर सजाए मंच पर
चौंक रही है रौशनी
रंग बिरंगी
खचाखच भरा है हॉल
कि प्रस्तुति है
सुप्रसिद्ध सितारवादिका सुगन्धा दास की
लोग बेसब्र हैं
उनकी बेसब्री के अपने अपने कारण हैं
तरह तरह के लोग
भाँति भाँति की बातें
सुगन्धा दास कोई एक.
आ चुकी है मंच पर मुस्कुराती हुई
निहाल हो चुकी है भीड़
निढ़ाल हो चुकी है भीड़
गज़ब की मोहिनी शक्ति है सुगन्धा दास में
बता रखा है पहले ही
कला समीक्षकों ने
चौंकती रौशनी में नहीं पहुँच रही है
कद्रदानों की नज़र ठीक ठीक
फिर भी आभास है
अपना अपना संचित विश्वास है
तरह तरह के देखनेवाले
हो रहे हैं संतुष्ट अकेले अकेले
सचमुच गज़ब ही चीज़ है
सुगन्धा दास सितारवादिका सुप्रसिद्ध !