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"बेदर्द / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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मैंने निचोड़कर दर्द<br>
 
मैंने निचोड़कर दर्द<br>
 
मन को<br>
 
मन को<br>

18:57, 24 जून 2009 का अवतरण

मैंने निचोड़कर दर्द
मन को
मानो सूखने के ख्याल से
रस्सी पर डाल दिया है

और मन
सूख रहा है

बचा-खुचा दर्द
जब उड़ जायेगा
तब फिर पहन लूँगा मैं उसे

माँग जो रहा है मेरा
बेवकूफ तन
बिना दर्द का मन !