भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नई सुबह / किरण मल्होत्रा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण मल्होत्रा }} <poem> पलकों पर सजे सुनहरे सपने प...)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:27, 4 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

पलकों पर
सजे सुनहरे सपने
पत्तों पर
गिरे चमकीले मोती
चांदनी पर
खिले सफ़ेद फूल
हमें बताते हैं
हमारी भूल

ये सब
बिखर जाते हैं
कुछ पल में
विचार नहीं बदलते
जीवन-भर

जीवन नदी है
कहीं नहीं रूकती
चाँद-सूरज
कभी नहीं थकते
जैसे रूका पानी
असहनीय हो जाता है
वैसे रूके विचार
अमानवीय हो जाते हैं

विचारों को
सपनों की तरह
टूटने दो
मोतियों की तरह
बिखरने दो
फूलों की तरह
झरने दो

तभी हमें
अहसास हो पाएगा
एक नई सुबह का