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07:12, 6 जुलाई 2009 के समय का अवतरण
कड़ी शीर्षक जी लेने की जिद है
गीत बनाने की जिद है !
आज मुझे गीत बनाने की जिद है !
हर अनुभव हर पहलु की आज गीत बनाने की जिद है !
दीवारों से बतियाने की जिद है !
दिए बहुत से जलते है !
पर आज अंधियारे में रहने की जिद है !
बहुत कुछ मन में है जो !
आज बाहर निकालने की जिद है !
हर पल हम घुटते थे मन में !
पर आज जीने की जिद है !
दीवारों से बात करने !
मन का आपा खो देने !
आज हमें क्योँ जिद है ?
खो गया है मन का आपा !
हमें इस बात की फिकर नही !
जिद है आज हमें गीत बनाने की जिद है !
ये दुनिया
अदभुद दुनिया का यह वर्णनं करते है !
आप
क्यों करते है ?
यह समझ सका न मै आज !
यह चमकीला सूरज लगता कितना प्यारा है !
रात की चान्दिनी रात के तारे लगते कितने प्यारे है !
क्यों लगते है ?
प्यारे ये चाँद और सितारे !
क्यों होता है दिन और क्योँ होता है रात !
यह समझ सका न आज मै यह समझ सका न आज मै !