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"कुछ और फुटकर शेर / फ़ानी बदायूनी" के अवतरणों में अंतर
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यूँ सब को भुला दे कि तुझे कोई न भूले। | यूँ सब को भुला दे कि तुझे कोई न भूले। | ||
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दुनिया ही में रहना है तो दुनिया से गुज़र जा॥ | दुनिया ही में रहना है तो दुनिया से गुज़र जा॥ | ||
− | क्या-क्या गिले न थे कि इधर | + | |
− | देखा तो कोई देखनेवाला नहीं | + | क्या-क्या गिले न थे कि इधर देखते नहीं। |
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+ | देखा तो कोई देखनेवाला नहीं रहा।। | ||
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एक आलम को देखता हूँ मैं। | एक आलम को देखता हूँ मैं। | ||
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यह तेरा ध्यान है मुजस्सिम क्या॥ | यह तेरा ध्यान है मुजस्सिम क्या॥ | ||
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फ़ुरसते-रंजेअसीरी दी न इन धड़कों ने हाय। | फ़ुरसते-रंजेअसीरी दी न इन धड़कों ने हाय। | ||
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अब छुरी सैयाद ने ली, अब क़फ़स का दर खुला॥ | अब छुरी सैयाद ने ली, अब क़फ़स का दर खुला॥ | ||
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मंज़िले-इश्क़ पै तनहा पहुँचे कोई तमन्ना साथ न थी। | मंज़िले-इश्क़ पै तनहा पहुँचे कोई तमन्ना साथ न थी। | ||
− | थक-थक कर इस राह में आख़िर इक-इक साथी छूट | + | |
+ | थक-थक कर इस राह में आख़िर इक-इक साथी छूट गया॥ |
16:37, 6 जुलाई 2009 का अवतरण
यूँ सब को भुला दे कि तुझे कोई न भूले।
दुनिया ही में रहना है तो दुनिया से गुज़र जा॥
क्या-क्या गिले न थे कि इधर देखते नहीं।
देखा तो कोई देखनेवाला नहीं रहा।।
एक आलम को देखता हूँ मैं।
यह तेरा ध्यान है मुजस्सिम क्या॥
फ़ुरसते-रंजेअसीरी दी न इन धड़कों ने हाय।
अब छुरी सैयाद ने ली, अब क़फ़स का दर खुला॥
मंज़िले-इश्क़ पै तनहा पहुँचे कोई तमन्ना साथ न थी।
थक-थक कर इस राह में आख़िर इक-इक साथी छूट गया॥