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"अभंग-5 / दिलीप चित्रे" के अवतरणों में अंतर
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चढ़ते ही मेरे
तू हो गया पठार
आर-पार बहे
तेरी हवा
पत्थर-झाड़ियों को भी
सतत स्पर्श तेरा
अब नहीं बैठूंगा
मन्दिर में
अनुवाद : चन्द्रकांत देवताले