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"दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला <br>
 
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला <br>
वही अन्दाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला <br><br>
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वही अन्दाज़ है ज़ालिम <ref>अत्याचारी</ref>का ज़मानेवाला <br><br>
  
 
अब इसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मेरा <br>
 
अब इसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मेरा <br>
सख़्त नदीम है मुझे दाम में लानेवाला <br><br>
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सख़्त नादिम<ref>लज्जित</ref> है मुझे दाम<ref>जाल, बंधन</ref> में लानेवाला <br><br>
  
क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे इस से <br>
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सुबह-दम छोड़ गया निक़हते-गुल<ref>गुलाब की ख़ुश्बू की तरह</ref> की सूरत<br>
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रात को ग़ुंचा-ए-दिल<ref>दिल की कली</ref>  में सिमट आने वाला<br><br>
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क्या कहें कितने मरासिम<ref>मेल-जोल</ref> थे हमारे उससे <br>
 
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जानेवाला <br><br>
 
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जानेवाला <br><br>
  
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आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आनेवाला <br><br>
 
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आनेवाला <br><br>
  
मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं <br>
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मुंतज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref>  किसका हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं <br>
 
कौन आयेगा यहाँ कौन है आनेवाला <br><br>
 
कौन आयेगा यहाँ कौन है आनेवाला <br><br>
  
मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते <br>
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मैंने देखा है बहारों<ref>वसंत ऋतुओं </ref>  में चमन को जलते <br>
है कोई ख़्वाब की ताबीर बतानेवाला <br><br>
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है कोई ख़्वाब की ताबीर<ref>स्वप्नफल</ref>  बतानेवाला <br><br>
  
 
क्या ख़बर थी जो मेरी जान में घुला है इतना <br>
 
क्या ख़बर थी जो मेरी जान में घुला है इतना <br>
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला <br><br>
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है वही मुझ को सर-ए-दार<ref>सूली तक</ref>  भी लाने वाला <br><br>
  
तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो "फ़राज़" <br>
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तुम तक़ल्लुफ़<ref>औपचारिकता</ref>  को भी इख़लास<ref>प्रेम</ref>  समझते हो "फ़राज़" <br>
 
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलानेवाला <br><br>
 
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलानेवाला <br><br>
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09:04, 15 जुलाई 2009 का अवतरण


दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला
वही अन्दाज़ है ज़ालिम <ref>अत्याचारी</ref>का ज़मानेवाला

अब इसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मेरा
सख़्त नादिम<ref>लज्जित</ref> है मुझे दाम<ref>जाल, बंधन</ref> में लानेवाला

सुबह-दम छोड़ गया निक़हते-गुल<ref>गुलाब की ख़ुश्बू की तरह</ref> की सूरत
रात को ग़ुंचा-ए-दिल<ref>दिल की कली</ref> में सिमट आने वाला

क्या कहें कितने मरासिम<ref>मेल-जोल</ref> थे हमारे उससे
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जानेवाला

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आनेवाला

मुंतज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref> किसका हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आयेगा यहाँ कौन है आनेवाला

मैंने देखा है बहारों<ref>वसंत ऋतुओं </ref> में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर<ref>स्वप्नफल</ref> बतानेवाला

क्या ख़बर थी जो मेरी जान में घुला है इतना
है वही मुझ को सर-ए-दार<ref>सूली तक</ref> भी लाने वाला

तुम तक़ल्लुफ़<ref>औपचारिकता</ref> को भी इख़लास<ref>प्रेम</ref> समझते हो "फ़राज़"
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलानेवाला

शब्दार्थ
<references/>