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"गुफ़्तगू / किरण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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13:11, 25 जुलाई 2009 का अवतरण

अगर मैं रख दूँ शब्द तुम्हारी गर्दन पर
ठीक जिबह होते जानवर की
गर्दन पर रखे चाकू की तरह
जानती हूँ
तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे
और यही करना है मुझे
तुमने किया है इस्तेमाल चाकू का
आदमी को मारने के लिए
मुझे करना है शब्दों का इस्तेमाल
धारदार चाकू की तरह
ईज़ाद करनी है वह भाषा
जो मेरी क़लम के इशारों की चेरी हो
जब तक इन्सान और इन्सानियत के बीच
गुफ़्तगू न हो जाए शुरू
बिश्वास जानो
तुम्हें चैन से नहीं बैठने देना मुझे