भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेवा घनी बई काबुल में / ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुर }} <poem>मेवा घनी बई काबुल में, बिंदराबन आनि कर...)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:50, 28 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

मेवा घनी बई काबुल में, बिंदराबन आनि करील लगाए
राधिका सी सुरबाम बिहाइ कै, कूबरी संग सनेह रचाए।

मेवा तजी दुरजोधन की, बिदुराइन के घर छोकल खाए।
'ठाकुर ठाकुर की का कहौं, सदा ठाकुर बावरे होतहिं आए॥