भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बेंदी / जगदीश गुप्त" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश गुप्त }} <poem> उगी गोरे भला पर बेंदी! एक छोटे द...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:22, 28 जुलाई 2009 का अवतरण
उगी गोरे भला पर बेंदी!
एक छोटे दारे में लालिमा इतनी बिथुरती,
बांध किसने दी।
नहा केसर के सरोवर में,
ज्यों गुलाबी चांद उग आया।
अनछुई-सी पांखुरी रक्ताभ पाटल की,
रक्तिमा जिसकी, शिराओं के
सिहरते वेग में,
झनकार बनकर खो गई।
भुनहरे के लहकते रवि की
विभा ज्यों फूट निकली,
चीरती-सी कोर हलके पीत बादल की,
रात केशों में सिमटकर सो गई।
अरुन इंदीवर खिला, ईंगूर पराग भरा
सुनहले रूप के जल में
अलक्तक की बूंद
झिलमिल : स्फटिक के तल में।