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"कभी उबाल कर ठंडा किया शरारों ने / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

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आज सुबह से धूप गरमाने लगी
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कभी उबाल कर ठंडा किया शरारों ने
पर्वतों की बर्फ पिघलाने लगी
+
कभी तो आग लगाई है अशआरों ने
  
बंद है गो द्वार कारागार का
+
जहाँ से पार उतरने में जन्म लग जाएँ
पर झरोखों से हवा आने लगी
+
पटक दिया है वहाँ वक्त के कहारों ने
  
फिर मुरम्मत हो रही है छतरियाँ
+
शुरू हुई थी सूखी तीलियों से पत्तों से
बादरी आकाश पर छाने लगी
+
मगर फैलाई तो हवाओं ने देवदारों ने
  
छिड़ गई चर्चा कहीं से भूख की
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कहाँ पे जा अब रोना ग़मों का हम रोएं
गाँव की चौपाल घबराने लगी
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मिजाज़ पुरसी में किया जो ग़मगुसारों ने
  
क्या करें हदबंदियों पर अब यकीं
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किसी के प्रेम में पाग़ल विलाप करते थे
बाड़ ही जब खेत को खाने लगी
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लहुलुहान किए उसके पलटवारो ने
 
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इतना गहरा तो हुआ तल कूप का
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लौट कर अपनी सदा आने लगी
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कब तलक तेरा भरम पाले रहूँ
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नींव से दिवार बतियाने लगी
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जो दुहाई दे रहे थे प्रेम की
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खौफ उनसे रूह अब खाने लगी
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01:26, 1 अगस्त 2009 का अवतरण

कभी उबाल कर ठंडा किया शरारों ने
कभी तो आग लगाई है अशआरों ने

जहाँ से पार उतरने में जन्म लग जाएँ
पटक दिया है वहाँ वक्त के कहारों ने

शुरू हुई थी सूखी तीलियों से पत्तों से
मगर फैलाई तो हवाओं ने देवदारों ने

कहाँ पे जा अब रोना ग़मों का हम रोएं
मिजाज़ पुरसी में किया जो ग़मगुसारों ने

किसी के प्रेम में पाग़ल विलाप करते थे
लहुलुहान किए उसके पलटवारो ने