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"तुम्हारे जल में / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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एक वह था
अपनी ही छवि पर
हो गया जो मुग्ध
और एक वह
मुग्ध हुआ जो चांद की छवि पर।

दरअसल, मुग्ध थे दोनों ही
जल पर
जल ख़ुद दर्पण है अपना
-छवि कोई हो उसमें-
अपने में खींचता है
डुबो लेता है

अब इसमें दोष किसका है
अगर डूबता ही जाता हूँ
तुम्हारे जल में।