भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लहरों की बात / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=कवि का कोई घर नहीं होता ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:56, 16 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
केवल आँख में ही नहीं होता जल
स्वर-ताल भी देखो
कैसे जल-तरंग-सी
लहरिया जाती है आधी रात
सुखा कर लहरों की चादर को
फैला देती बहती हवा
सवेरे दिखता है
फिर वही रेगिस्तान
संजोए छाती में
अपनी लहरों की बात।