"बरसातें / शमशाद इलाही अंसारी" के अवतरणों में अंतर
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11:44, 21 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
सफ़ेद, भूरे, हल्के नीले बादल
गहरे होकर
पैठ गये आकाश में
टूट पडी बूंदें
छ्त पर, सडक पर,
भरे बाज़ार में,
संकरी गलियों में।
मोटी-मोटी बूंदें
पीटती हैं वृक्षों को
पर वे हैं बेअसर
झूमते उपहास करते।
परन्तु जब मोटी बूंदें
छोटे-छोटे पौधों को पीटती
देर तक वो काँपते, सिहरते
कोमल फ़ूल बिखर जाते।
दुपक जाते है आदमी
मकानों में, दुकानों में
छजलों के नीचे
पर गली-कूचों में
भर जाती हैं किलकारियाँ
उमड़ कूद पड़ते हैं बच्चे
नगें-अधनंगे
स्कूल से लौटते बालक
टहलते-भीगते बेअसर
या फ़िर भीगता रहता है
अपने ख़ेत में खड़ा
किसान और मज़दूर,
मैला ढो़ता दलित
दूसरी ओर खुल जाती हैं
काली, रंग-बिरंगी छतरियाँ
चढ़ जाते हैं कारों के शीशे
खुल जाती है रिक्शा की छत
ये है बरसात
गरीबों की अलग
अमीरों की अलग।
रचनाकाल : 23.08.1988