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"चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिये / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिये
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मैं हूँ ख़ामोश जहाँ , मुझको वहाँ से सुनिये
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कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें <br>
 
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चाँद में कैसे हुई कैद किसी घर की खुशी <br>
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ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिये
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ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिए

11:46, 15 अप्रैल 2008 का अवतरण

चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिए
हर जगह आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिए

सबको आता नहीं दुनिया को सजाकर जीना
ज़िन्दगी क्या है मुहब्बत की ज़बां से सुनिए

क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाए
मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिए

मेरी आवाज़ ही पर्दा है मेरे चेहरे का
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ , मुझको वहाँ से सुनिए

कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें
किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवाँ से सुनिए

चांद में कैसे हुई क़ैद किसी घर की ख़ुशी
ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिए