भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कशिश ही ऐसी है कुछ मेरे दिल के छालों में / सुरेश चन्द्र शौक़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश चन्द्र शौक़ |संग्रह = आँच / सुरेश चन्द्र शौ...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
 
कशिश ही ऐसी है कुछ मेरे दिल के छालों में
 
कशिश ही ऐसी है कुछ मेरे दिल के छालों में
  
पंक्ति 15: पंक्ति 16:
  
  
तिरे सुलूक का चाहा था तजज़िया करना
+
तिरे सुलूक<ref>व्यवहार</ref> का चाहा था तजज़िया करना<ref>विश्लेषण करना </ref>
  
 
तमाम उम्र मैं उलझा  रहा सवालों में  
 
तमाम उम्र मैं उलझा  रहा सवालों में  
पंक्ति 30: पंक्ति 31:
  
  
हमें भी शौक़ मयस्सर  रही  है  ये  नेमत
+
हमें भी शौक़ मयस्सर<ref>उपलब्ध</ref> रही  है  ये  नेमत
  
 
रहे हैं हम भी  किसी के हसीं  ख़्यालों  में.
 
रहे हैं हम भी  किसी के हसीं  ख़्यालों  में.
पंक्ति 36: पंक्ति 37:
  
  
तजज़िया करना=विश्लेषण करना;मयस्सर=उपलब्ध
+
{{KKMeaning}}

21:09, 6 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

कशिश ही ऐसी है कुछ मेरे दिल के छालों में

कि मेरी धूम मची है तबाह —हालों में


किसी भी बात को सोचूँ तो किसी भी पहलू से

तिरा ख़्याल ही उभरे मिरे ख़्यालों में


तिरे सुलूक<ref>व्यवहार</ref> का चाहा था तजज़िया करना<ref>विश्लेषण करना </ref>

तमाम उम्र मैं उलझा रहा सवालों में


तुम्हारे रूप की सजधज में कुछ कमी है अभी

दिल अपना टाँक न दूँ मैं तुम्हारे बालों में


तुझे तलाश—ए—सुकूँ है तो अपने दिल में ढूँढ

न मस्जिदों में मिलेगा न ये शिवालों में


हमें भी शौक़ मयस्सर<ref>उपलब्ध</ref> रही है ये नेमत

रहे हैं हम भी किसी के हसीं ख़्यालों में.


शब्दार्थ
<references/>