भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदगुमाँ हम से हो गया कोई / परमानन्द शर्मा 'शरर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
छो
 
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
चुपके-चुपके-से रो गया कोई
 
चुपके-चुपके-से रो गया कोई
  
शम्मे-बेमितर को ख़बर न हुई
+
शम्मे-बे-मिहर को ख़बर न हुई
 
जान से हाथ धो गया कोई
 
जान से हाथ धो गया कोई
  

06:45, 8 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण


बदगुमाँ हम से हो गया कोई
बहरे-ग़म में डुबो गया कोई

उनको अपना के मैं समझता था
आसरा दिल का हो गया कोई

जान तक दे राहे-उल्फ़त में
इश्क़ के दाग़ धो गया कोई

रिंद तो हश्र में थे होंठ सिये
फ़िक्रे-जन्नत में खो गया कोई

मेरे मरने के बाद मदफ़न पर
चुपके-चुपके-से रो गया कोई

शम्मे-बे-मिहर को ख़बर न हुई
जान से हाथ धो गया कोई

देख कर लाश को `शरर' की कहा
रोते-रोते है सो गया कोई