भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दोहा / राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द }} {{KKCatKavita}} <poem> छा गई ठ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:07, 8 सितम्बर 2009 का अवतरण
छा गई ठण्डी साँस झाड़ों में।
पड़ गई कूक-सी पहाड़ों में।
हम नहीं हँसने से रोकते जिसका जी चाहे हँसे।
है वही अपनी कहावत आपसे जी आ फँसे।
अब तो सारा अपने पीछे झगड़ा-झाँटा लग गया।
पाँव में क्या ढूंढ़ती है? जी में काँटा लग गया।