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"भर देते हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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भर देते हो
 
बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से
 
क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो।
 
  
मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,
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भर देते हो<br>
कर जाते हो व्यथा-भाल लधु
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बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से<br>
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;
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क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो।<br><br>
  
अंधकार में मेरा रोदन
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मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,<br>
सिक्त धरा के अंचल को
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कर जाते हो व्यथा-भाल लधु<br>
करता है क्षण-क्षण-
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बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;<br><br>
  
कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण
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अंधकार में मेरा रोदन<br>
तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,
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सिक्त धरा के अंचल को<br>
नव प्रभात जीवन में भर देते हो।
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करता है क्षण-क्षण-<br><br>
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कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण<br>
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तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,<br>
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नव प्रभात जीवन में भर देते हो।<br><br>

22:54, 28 अक्टूबर 2006 का अवतरण

लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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भर देते हो
बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से
क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो।

मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर,
कर जाते हो व्यथा-भाल लधु
बार-बार कर-कंज बढ़ाकर;

अंधकार में मेरा रोदन
सिक्त धरा के अंचल को
करता है क्षण-क्षण-

कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण
तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो,
नव प्रभात जीवन में भर देते हो।