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"बादल राग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग १" के अवतरणों में अंतर

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बादल राग -1
 
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झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर।
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राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
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राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!<br><br>
  
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,
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घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में,
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सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में,
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मन में, विजन-गहन-कानन में,
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आनन-आनन में, रव घोर-कठोर-
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राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
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राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!<br><br>
  
अरे वर्ष के हर्ष!
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बरस तू बरस-बरस रसधार!
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पार ले चल तू मुझको,  
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बहा, दिखा मुझको भी निज
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बहा, दिखा मुझको भी निज<br>
गर्जन-भैरव-संसार!
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गर्जन-भैरव-संसार!<br><br>
  
उथल-पुथल कर हृदय-
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चल रे चल-
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चल रे चल-<br>
मेरे पागल बादल!
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मेरे पागल बादल!<br><br>
  
धँसता दलदल
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हँसता है नद खल्-खल्
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बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल।
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बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल।<br><br>
  
देख-देख नाचता हृदय
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देख-देख नाचता हृदय<br>
बहने को महा विकल-बेकल,
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बहने को महा विकल-बेकल,<br>
इस मरोर से- इसी शोर से-
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इस मरोर से- इसी शोर से-<br>
सघन घोर गुरु गहन रोर से
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सघन घोर गुरु गहन रोर से<br>
मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर!
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मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर!<br>
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
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राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!<br><br>
 
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22:57, 28 अक्टूबर 2006 का अवतरण

लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर।
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!

झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,
घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में,
मन में, विजन-गहन-कानन में,
आनन-आनन में, रव घोर-कठोर-
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!

अरे वर्ष के हर्ष!
बरस तू बरस-बरस रसधार!
पार ले चल तू मुझको,
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार!

उथल-पुथल कर हृदय-
मचा हलचल-
चल रे चल-
मेरे पागल बादल!

धँसता दलदल
हँसता है नद खल्-खल्
बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल।

देख-देख नाचता हृदय
बहने को महा विकल-बेकल,
इस मरोर से- इसी शोर से-
सघन घोर गुरु गहन रोर से
मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर!
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!