भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऐसे मैं मन बहलाता हूँ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
सोचा करता बैठ अकेले,<br>
 
सोचा करता बैठ अकेले,<br>
 
गत जीवन के सुख-दुख झेले,<br>
 
गत जीवन के सुख-दुख झेले,<br>
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सलाता हूँ!<br>
+
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!<br>
 
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!<br><br>
 
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!<br><br>
  

13:20, 11 दिसम्बर 2007 का अवतरण

लेखक: हरिवंशराय बच्चन

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!