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"था तुम्हें मैंने रुलाया / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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+ | -- हरिवंशराय बच्चन के कविता संग्रह "निशा निमन्त्रण" से<br><br> |
01:42, 13 नवम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: हरिवंशराय बच्चन
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हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर -
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
-- हरिवंशराय बच्चन के कविता संग्रह "निशा निमन्त्रण" से