भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खारे क्यों रहे सिंधु! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=प्रथम आयाम / महादेवी वर्मा | |संग्रह=प्रथम आयाम / महादेवी वर्मा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
होती है न प्राण की प्रतिष्ठा न वेदी पर<br> | होती है न प्राण की प्रतिष्ठा न वेदी पर<br> | ||
देवता का विग्रह जबखण्डित हो जाता है।<br><br> | देवता का विग्रह जबखण्डित हो जाता है।<br><br> |
23:54, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
होती है न प्राण की प्रतिष्ठा न वेदी पर
देवता का विग्रह जबखण्डित हो जाता है।
वृन्त से झड़कर जो फूल सूख जाता है,
उसको कब माली माला में गूँथ पाता है?
लेकर बुझा दीप कौन भक्त ऐसा है
कौन उससे पूजा की आरती सजाता है?
मानव की अपनी उद्देश्यहीन यात्रा पर
टूटे सपनों का भार ढोता थक जाता है।
मोती रचती है सीप मूँगे हैं, माणिक हैं
वैभव तुम्हारा रत्नाकर कहलाता है।
दिनकर किरणों से अभिनन्दन करता है नित्य
चन्द्रमा भी चाँदनी से चन्दन लगाता है।
निर्झर नद-नदियों का स्नेह तरल मीठा जल
तुझको समर्पित हो तुझ में मिल जाता है।
कौन सी कृपणता है खारे क्यों रहे सिंधु!
याचक क्यों एक घूँट तुझसे न पाता है?