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"जाड़े की साँझ / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चपु | किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चपु | ||
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अपने घर को चल पड़ी सहस्त्रों हँस-हँस | अपने घर को चल पड़ी सहस्त्रों हँस-हँस | ||
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उ ण्ड खेलतीं घुल-मिल होड़ा-होड़ी | उ ण्ड खेलतीं घुल-मिल होड़ा-होड़ी | ||
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रोके रंगों वाली छबियाँ? किसका बस! | रोके रंगों वाली छबियाँ? किसका बस! | ||
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ये नटखट फिर से सुबह-सुबह आवेंगी | ये नटखट फिर से सुबह-सुबह आवेंगी | ||
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पंखनियाँ स्वागत-गीत कि जब गावेंगी। | पंखनियाँ स्वागत-गीत कि जब गावेंगी। | ||
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दूबों के आँसू टपक उठेंगे ऐसे | दूबों के आँसू टपक उठेंगे ऐसे | ||
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हों हर्ष वायु से बेक़ाबू- से जैसे। | हों हर्ष वायु से बेक़ाबू- से जैसे। | ||
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कलियाँ हँस देंगी | कलियाँ हँस देंगी | ||
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फूलों के स्वर होगा | फूलों के स्वर होगा | ||
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आगन्तुक-दल की आँखों का घर होगा, | आगन्तुक-दल की आँखों का घर होगा, | ||
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ऊँचे उठना कलिकाओं का वर होगा | ऊँचे उठना कलिकाओं का वर होगा | ||
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नीचे गिरना फूलों का ईश्वर होगा। | नीचे गिरना फूलों का ईश्वर होगा। | ||
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शाला चमकेगी फिर ब्रह्माण्ड-भवन की | शाला चमकेगी फिर ब्रह्माण्ड-भवन की | ||
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खेलेंगी आँख-मिचौनी नटखट मन की। | खेलेंगी आँख-मिचौनी नटखट मन की। | ||
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इनके रूपों में नया रंग-सा होगा | इनके रूपों में नया रंग-सा होगा | ||
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सोई दुनिया का स्वपन दंग-सा होगा | सोई दुनिया का स्वपन दंग-सा होगा | ||
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यह सन्ध्या है, पक्षी चुप्पी साधेंगे | यह सन्ध्या है, पक्षी चुप्पी साधेंगे | ||
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किरणों की शाला बन्द हो गई- चुप-चुप। | किरणों की शाला बन्द हो गई- चुप-चुप। | ||
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10:17, 6 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चपु
अपने घर को चल पड़ी सहस्त्रों हँस-हँस
उ ण्ड खेलतीं घुल-मिल होड़ा-होड़ी
रोके रंगों वाली छबियाँ? किसका बस!
ये नटखट फिर से सुबह-सुबह आवेंगी
पंखनियाँ स्वागत-गीत कि जब गावेंगी।
दूबों के आँसू टपक उठेंगे ऐसे
हों हर्ष वायु से बेक़ाबू- से जैसे।
कलियाँ हँस देंगी
फूलों के स्वर होगा
आगन्तुक-दल की आँखों का घर होगा,
ऊँचे उठना कलिकाओं का वर होगा
नीचे गिरना फूलों का ईश्वर होगा।
शाला चमकेगी फिर ब्रह्माण्ड-भवन की
खेलेंगी आँख-मिचौनी नटखट मन की।
इनके रूपों में नया रंग-सा होगा
सोई दुनिया का स्वपन दंग-सा होगा
यह सन्ध्या है, पक्षी चुप्पी साधेंगे
किरणों की शाला बन्द हो गई- चुप-चुप।