"ग्राम श्री / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | फैली खेतों में दूर तलक | + | {{KKCatKavita}} |
− | मख़मल की कोमल हरियाली, | + | <poem> |
− | लिपटीं जिस से रवि की किरणें | + | फैली खेतों में दूर तलक |
− | चाँदी की-सी उजली जाली ! | + | मख़मल की कोमल हरियाली, |
+ | लिपटीं जिस से रवि की किरणें | ||
+ | चाँदी की-सी उजली जाली ! | ||
− | रोमाँचित-सी लगती वसुधा | + | रोमाँचित-सी लगती वसुधा |
− | आयी जौ-गेहूँ में बाली | + | आयी जौ-गेहूँ में बाली |
− | अरहर सनई की सोने की | + | अरहर सनई की सोने की |
− | किंकिणियाँ हैं शोभाशाली | + | किंकिणियाँ हैं शोभाशाली |
− | उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध | + | उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध |
− | फूली सरसों पीली-पीली, | + | फूली सरसों पीली-पीली, |
− | लो, हरित धरा से झाँक रही | + | लो, हरित धरा से झाँक रही |
− | नीलम की कलि, तीसी नीली, | + | नीलम की कलि, तीसी नीली, |
− | रँग-रँग के फूलों में रिलमिल | + | रँग-रँग के फूलों में रिलमिल |
− | हँस रही संखिया मटर खड़ी, | + | हँस रही संखिया मटर खड़ी, |
− | मख़मली पेटियों-सी लटकी | + | मख़मली पेटियों-सी लटकी |
− | छीमियाँ, छिपाये बीज लड़ी ! | + | छीमियाँ, छिपाये बीज लड़ी ! |
− | अब रजत-स्वर्ण मंजरियों से | + | अब रजत-स्वर्ण मंजरियों से |
− | लद गयी आम्र-तरु की डाली, | + | लद गयी आम्र-तरु की डाली, |
− | झर रहे ढाँक, पीपल के दल, | + | झर रहे ढाँक, पीपल के दल, |
− | हो उठी कोकिला मतवाली ! | + | हो उठी कोकिला मतवाली ! |
− | महके कटहल, मुकुलित जामुन, | + | महके कटहल, मुकुलित जामुन, |
− | जंगल में झरबेरी झूली, | + | जंगल में झरबेरी झूली, |
− | फूले आड़ू, नीबू, दाड़िम, | + | फूले आड़ू, नीबू, दाड़िम, |
− | आलू, गोभी, बैगन, मूली ! | + | आलू, गोभी, बैगन, मूली ! |
− | पीले मीठे अमरूदों में | + | पीले मीठे अमरूदों में |
− | अब लाल-लाल चित्तियाँ पड़ीं | + | अब लाल-लाल चित्तियाँ पड़ीं |
− | पक गये सुनहले मधुर बेर, | + | पक गये सुनहले मधुर बेर, |
− | अँवली से तरु की डाल जड़ीं ! | + | अँवली से तरु की डाल जड़ीं ! |
− | लहलह पालक,महमह धनिया, | + | लहलह पालक,महमह धनिया, |
− | लौकी औ' सेम फली,फैलीं ! | + | लौकी औ' सेम फली,फैलीं ! |
− | मख़मली टमाटर हुए लाल, | + | मख़मली टमाटर हुए लाल, |
− | मिरचों की बड़ी हरी थैली ! | + | मिरचों की बड़ी हरी थैली ! |
− | गंजी को मार गया पाला, | + | गंजी को मार गया पाला, |
− | अरहर के फूलों को झुलसा, | + | अरहर के फूलों को झुलसा, |
− | हाँका करती दिन-भर बन्दर | + | हाँका करती दिन-भर बन्दर |
− | अब मालिन की लड़की तुलसा ! | + | अब मालिन की लड़की तुलसा ! |
− | बालाएँ गजरा काट-काट, | + | बालाएँ गजरा काट-काट, |
− | कुछ कह गुपचुप हँसतीं किन-किन | + | कुछ कह गुपचुप हँसतीं किन-किन |
− | चाँदी की-सी घण्टियाँ तरल | + | चाँदी की-सी घण्टियाँ तरल |
− | बजती रहती रह-रह खिन-खिन! | + | बजती रहती रह-रह खिन-खिन! |
− | बगिया के छोटे पेड़ों पर | + | बगिया के छोटे पेड़ों पर |
− | सुन्दर लगते छोटे छाजन, | + | सुन्दर लगते छोटे छाजन, |
− | सुन्दर गेहूँ, की बालों पर | + | सुन्दर गेहूँ, की बालों पर |
− | मोती के दानों से हिमकन ! | + | मोती के दानों से हिमकन ! |
− | प्रात: ओझल हो जाता जग, | + | प्रात: ओझल हो जाता जग, |
− | भू पर आता ज्यों उतर गगन, | + | भू पर आता ज्यों उतर गगन, |
− | सुन्दर लगते फिर कुहरे से | + | सुन्दर लगते फिर कुहरे से |
− | उठते-से खेत, बाग़, गॄह वन ! | + | उठते-से खेत, बाग़, गॄह वन ! |
− | लटके तरुओं पर विहग नीड़ | + | लटके तरुओं पर विहग नीड़ |
− | वनचर लड़कों को हुए ज्ञात, | + | वनचर लड़कों को हुए ज्ञात, |
− | रेखा-छवि विरल टहनियों की | + | रेखा-छवि विरल टहनियों की |
− | ठूँठे तरुओं के नग्न गात ! | + | ठूँठे तरुओं के नग्न गात ! |
− | आँगन में दौड़ रहे पत्ते, | + | आँगन में दौड़ रहे पत्ते, |
− | धूमती भँवर-सी शिशिर-वात, | + | धूमती भँवर-सी शिशिर-वात, |
− | बदली छँटने पर लगती प्रिय | + | बदली छँटने पर लगती प्रिय |
− | ऋतुमती धरित्री सद्य-स्नात ! | + | ऋतुमती धरित्री सद्य-स्नात ! |
− | हँसमुख हरियाली हिम-आतप | + | हँसमुख हरियाली हिम-आतप |
− | सुख से अलसाए-से सोये, | + | सुख से अलसाए-से सोये, |
− | भीगी अँधियाली में निशि की | + | भीगी अँधियाली में निशि की |
− | तारक स्वप्नों में-से-खोये,- | + | तारक स्वप्नों में-से-खोये,- |
− | मरकत डिब्बे-सा खुला ग्राम- | + | मरकत डिब्बे-सा खुला ग्राम- |
− | जिस पर नीलम नभ-आच्छादन- | + | जिस पर नीलम नभ-आच्छादन- |
− | निरुपम हिमान्त में स्निग्ध-शान्त | + | निरुपम हिमान्त में स्निग्ध-शान्त |
− | निज शोभा से हरता न-मनज !< | + | निज शोभा से हरता न-मनज ! |
+ | </poem> |
00:45, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण
फैली खेतों में दूर तलक
मख़मल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिस से रवि की किरणें
चाँदी की-सी उजली जाली !
रोमाँचित-सी लगती वसुधा
आयी जौ-गेहूँ में बाली
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली
उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली,
रँग-रँग के फूलों में रिलमिल
हँस रही संखिया मटर खड़ी,
मख़मली पेटियों-सी लटकी
छीमियाँ, छिपाये बीज लड़ी !
अब रजत-स्वर्ण मंजरियों से
लद गयी आम्र-तरु की डाली,
झर रहे ढाँक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली !
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नीबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैगन, मूली !
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल-लाल चित्तियाँ पड़ीं
पक गये सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ीं !
लहलह पालक,महमह धनिया,
लौकी औ' सेम फली,फैलीं !
मख़मली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !
गंजी को मार गया पाला,
अरहर के फूलों को झुलसा,
हाँका करती दिन-भर बन्दर
अब मालिन की लड़की तुलसा !
बालाएँ गजरा काट-काट,
कुछ कह गुपचुप हँसतीं किन-किन
चाँदी की-सी घण्टियाँ तरल
बजती रहती रह-रह खिन-खिन!
बगिया के छोटे पेड़ों पर
सुन्दर लगते छोटे छाजन,
सुन्दर गेहूँ, की बालों पर
मोती के दानों से हिमकन !
प्रात: ओझल हो जाता जग,
भू पर आता ज्यों उतर गगन,
सुन्दर लगते फिर कुहरे से
उठते-से खेत, बाग़, गॄह वन !
लटके तरुओं पर विहग नीड़
वनचर लड़कों को हुए ज्ञात,
रेखा-छवि विरल टहनियों की
ठूँठे तरुओं के नग्न गात !
आँगन में दौड़ रहे पत्ते,
धूमती भँवर-सी शिशिर-वात,
बदली छँटने पर लगती प्रिय
ऋतुमती धरित्री सद्य-स्नात !
हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोये,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से-खोये,-
मरकत डिब्बे-सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ-आच्छादन-
निरुपम हिमान्त में स्निग्ध-शान्त
निज शोभा से हरता न-मनज !