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"छोड़ द्रुमों की मृदु छाया / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
 
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तोड़ प्रकृति से भी माया,<br>
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::बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
 
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::भूल अभी से इस जग को!<br><br>
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::भूल अभी से इस जग को!
 
तज कर तरल तरंगों को,
 
तज कर तरल तरंगों को,
इन्द्रधनुष के रंगों को,<br>
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इन्द्रधनुष के रंगों को,  
 
::तेरे भ्रू भ्रंगों से कैसे बिधवा दूँ निज मृग सा मन?
 
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::भूल अभी से इस जग को!<br><br>
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कोयल का वह कोमल बोल,
 
कोयल का वह कोमल बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,<br>
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मधुकर की वीणा अनमोल,  
 
::कह तब तेरे ही प्रिय स्वर से कैसे भर लूँ, सजनि, श्रवण?
 
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::भूल अभी से इस जग को!<br><br>
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ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
 
ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
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::ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
 
::ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
 
::भूल अभी से इस जग को!
 
::भूल अभी से इस जग को!
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00:53, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!
तज कर तरल तरंगों को,
इन्द्रधनुष के रंगों को,
तेरे भ्रू भ्रंगों से कैसे बिधवा दूँ निज मृग सा मन?
भूल अभी से इस जग को!
कोयल का वह कोमल बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,
कह तब तेरे ही प्रिय स्वर से कैसे भर लूँ, सजनि, श्रवण?
भूल अभी से इस जग को!
ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
सुधा-रश्मि से उतरा जल,
ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
भूल अभी से इस जग को!