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"इंतज़ार-2 / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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12:24, 27 अक्टूबर 2009 का अवतरण

प्रेम होने पर
तुमसे कहा मैंने-
प्रेम एक कुआँ है,
जिसमें गिर पड़ा हूँ मैं
या प्रेम एक पहाड़ है
जिस पर चढ़ गया हूँ मैं ।

तुमने कहा-
मैं हूँ अभी ज़मीन पर
और रहना चाहती हूँ-
इसी ज़मीन पर ।

मैंने कहा-
मैं इंतज़ार करुँगा ।