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मेरे अन्दर
एक जानवर है
जो मेरे
अन्दर के आदमी को
सताता है
धमकाता है
और डराए रखता है
फिर भी कई बार
मेरे अन्दर का आदमी
उस दरिंदे की
ज़रूरत महसूस करता है।
जंगल में रहना
मुश्किल है शायद
जानवर हुए बिना !
मूल राजस्थानी से अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा