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"चारों धाम नहीं / अजय पाठक" के अवतरणों में अंतर

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रिश्तों में अब आदर्शों का कोई काम नहीं
 
रिश्तों में अब आदर्शों का कोई काम नहीं

11:27, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

रिश्तों में अब आदर्शों का कोई काम नहीं
वह भी राधा नहीं रही और हम भी श्याम नहीं।
सीतायें बंदी हैं अब तक उसके महलों में
रावण से जाकर टकरायें अब वो राम नहीं।

गोपालों से मिली गोपियाँ रास रचाती है
उन्मादों के इन रिश्तों का कोई नाम नहीं।
पंचाली को जकड़ रखा पापी दुर्योधन ने
अर्जुन का पुरुषत्व दिखाता कोई काम नहीं।

झूठ इबादत, बदी बंदगी धोखा अर्चन है
काबा-काशी इसके आगे चारो धाम नहीं।