भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घबरा कर / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कुंवर नारायण
 
|रचनाकार=कुंवर नारायण
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था  
 
वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था  
 
 
लेकिन घबरा कर वह नहीं मैं उस पर भूँक पड़ा था ।
 
लेकिन घबरा कर वह नहीं मैं उस पर भूँक पड़ा था ।
 
 
  
 
ज़्यादातर कुत्ते  
 
ज़्यादातर कुत्ते  
 
 
पागल नहीं होते  
 
पागल नहीं होते  
 
 
न ज़्यादातर जानवर  
 
न ज़्यादातर जानवर  
 
 
हमलावर  
 
हमलावर  
 
 
ज़्यादातर आदमी  
 
ज़्यादातर आदमी  
 
 
डाकू नहीं होते  
 
डाकू नहीं होते  
 
 
न ज़्यादातर जेबों में चाकू  
 
न ज़्यादातर जेबों में चाकू  
 
 
  
 
ख़तरनाक तो दो चार ही होते लाखों में  
 
ख़तरनाक तो दो चार ही होते लाखों में  
 
 
लेकिन उनका आतंक चौकता रहता हमारी आँखों में ।
 
लेकिन उनका आतंक चौकता रहता हमारी आँखों में ।
 
 
  
 
मैंने जिसे पागल समझ कर  
 
मैंने जिसे पागल समझ कर  
 
 
दुतकार दिया था  
 
दुतकार दिया था  
 
 
वह मेरे बच्चे को ढूँढ रहा था  
 
वह मेरे बच्चे को ढूँढ रहा था  
 
 
जिसने उसे प्यार दिया था।
 
जिसने उसे प्यार दिया था।
 +
</poem>

02:09, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था
लेकिन घबरा कर वह नहीं मैं उस पर भूँक पड़ा था ।

ज़्यादातर कुत्ते
पागल नहीं होते
न ज़्यादातर जानवर
हमलावर
ज़्यादातर आदमी
डाकू नहीं होते
न ज़्यादातर जेबों में चाकू

ख़तरनाक तो दो चार ही होते लाखों में
लेकिन उनका आतंक चौकता रहता हमारी आँखों में ।

मैंने जिसे पागल समझ कर
दुतकार दिया था
वह मेरे बच्चे को ढूँढ रहा था
जिसने उसे प्यार दिया था।