भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रधान और पुल / अरुण कमल

22 bytes added, 07:15, 5 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अरुण कमल
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
अपने प्रधान को नए बने पुल का
 
उद्घाटन करना था और जैसी प्रथा थी
 
पुल पर सबसे पहले उन्हीं को चलना था
 
प्रधान ने एक बार रस्ते को ताका
 
कुछ सोचा
 
कुछ भाँपा
 
और कहा-- भाइयो! लोगो! समझो उद्घाटन हो गया
 
और लौट गए
 
बात यह थी कि प्रधान को पुल पर भरोसा न था
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,395
edits