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"क्या भरोसा हो किसी हमदम का / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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क्या भरोसा हो किसी हमदम का
 
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चांद उभरा तो अंधेरा चमका
 
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सुबह को राह दिखाने के लिए
 
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दस्ते-गुल में है दीया शबनम का
 
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मुझ को अबरू, तुझे मेहराब पसन्द
 
मुझ को अबरू, तुझे मेहराब पसन्द
 
 
सारा झगड़ा इसी नाजुक ख़म का
 
सारा झगड़ा इसी नाजुक ख़म का
 
  
 
हुस्न की जुस्तजू-ए-पैहम में
 
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एक लम्हा भी नहीं मातम का
 
एक लम्हा भी नहीं मातम का
 
  
 
मुझ से मर कर भी न तोड़ा जाए
 
मुझ से मर कर भी न तोड़ा जाए
 
 
हाय ये नशा ज़मीं के नम का
 
हाय ये नशा ज़मीं के नम का
 
  
 
दस्ते-गुल= फूल के हाथ; अबरू= भौंह; ख़म= टेढ़ापन; जुस्तजू-ए-पैहम=ख़ूबसूरती की लगातार चलने वाली चर्चा
 
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19:32, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

क्या भरोसा हो किसी हमदम का
चांद उभरा तो अंधेरा चमका

सुबह को राह दिखाने के लिए
दस्ते-गुल में है दीया शबनम का

मुझ को अबरू, तुझे मेहराब पसन्द
सारा झगड़ा इसी नाजुक ख़म का

हुस्न की जुस्तजू-ए-पैहम में
एक लम्हा भी नहीं मातम का

मुझ से मर कर भी न तोड़ा जाए
हाय ये नशा ज़मीं के नम का

दस्ते-गुल= फूल के हाथ; अबरू= भौंह; ख़म= टेढ़ापन; जुस्तजू-ए-पैहम=ख़ूबसूरती की लगातार चलने वाली चर्चा