भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रेम अंकुरण / मोहन सगोरिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन सगोरिया |संग्रह=जैसे अभी-अभी / मोहन सगोरिया…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:26, 12 नवम्बर 2009 का अवतरण
फूल के भीतर
प्रेम है फल
फूल के भीतर
प्रेम है बीज
बीज के भीतर
प्रेम है वृक्ष
वृक्ष के भीतर
प्रेम है जीवन
जीवन के भीतर
प्रेम है संसार
संसार के भीतर
प्रेम नहीं
...तो निस्सार
बहुत गहरे धँसा है प्रेम।