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"बचपन-2 / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

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मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
 
मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
 
सर पे माँ-बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
 
सर पे माँ-बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
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हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
 
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
 
सगी है या सौतेली है ये माँ बच्चे समझते हैं
 
सगी है या सौतेली है ये माँ बच्चे समझते हैं
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ये बच्ची चाहती और कुछ दिन माँ को ख़ुश रखना
 
ये बच्ची चाहती और कुछ दिन माँ को ख़ुश रखना
 
ये कपड़ों के मदद से अपनी लम्बाई छ्पाती है
 
ये कपड़ों के मदद से अपनी लम्बाई छ्पाती है
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ये सोच के माँ -बाप की ख़िदमत<ref>सेवा</ref>में लगा हूँ
 
ये सोच के माँ -बाप की ख़िदमत<ref>सेवा</ref>में लगा हूँ
 
इस पेड़ का साया मेरे बच्चों को मिलेगा
 
इस पेड़ का साया मेरे बच्चों को मिलेगा
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हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते
 
हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते
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बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
 
बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
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अब जाग भी जाते हैं तो सहरी <ref>वह भोजन जो रोज़ा करने सेपहले बहुत तड़के किया जाता है</ref>नहीं खाते
नहीं खाते**
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14:48, 28 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण


मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
सर पे माँ-बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
                            **

हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या सौतेली है ये माँ बच्चे समझते हैं
                           **


ये बच्ची चाहती और कुछ दिन माँ को ख़ुश रखना
ये कपड़ों के मदद से अपनी लम्बाई छ्पाती है
                           **


ये सोच के माँ -बाप की ख़िदमत<ref>सेवा</ref>में लगा हूँ
इस पेड़ का साया मेरे बच्चों को मिलेगा
                           **

हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते

बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
अब जाग भी जाते हैं तो सहरी <ref>वह भोजन जो रोज़ा करने सेपहले बहुत तड़के किया जाता है</ref>नहीं खाते
                       **

शब्दार्थ
<references/>