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"किनकी ध्वनियों को दुहराऊँ / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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और तुम्हारा वैभव लेकर गीत तुम्हारा होने को।
 
और तुम्हारा वैभव लेकर गीत तुम्हारा होने को।
  
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'''रचनाकाल: श्री मनोहर पन्त जी का निवास, जबलपुर-१९३२
 
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15:04, 12 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

ऐ मेरी प्रेरणा-बीन के वादक!
बे जाने जब जब, बजा चुके हो,
जगा चुके हो, सोते फितनों को जब-तब,

किन चरणों में आज उन्हें रक्खूँ?
किसका अपमान करूँ?
किसकी ध्वनियों को दुहराऊँ
हृदय हलाहल-दान करूँ?

आया हूँ मैं नाथ, तुम्हारे कण्ठ कालिमा देने को!
और तुम्हारा वैभव लेकर गीत तुम्हारा होने को।

रचनाकाल: श्री मनोहर पन्त जी का निवास, जबलपुर-१९३२