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Kavita Kosh से
या पाऊँचा सलवार का
पर सब घरों में होती हैघर खींचते हैं
ज़ाहिर या नहीं ज़ाहिर-सी
जिसके भीतर रहना
एक मात्र विकल्प औरत के लिए
पर सब घर
खड़ाऊँ पहने
जिसके अग्नि-मुख
बन्द करती फिरती है औरत.
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