भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चाहिये अच्छों को जितना चाहिये / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
छो
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
ये अगर चाहें तो फिर क्या चाहिये<br><br>
 
ये अगर चाहें तो फिर क्या चाहिये<br><br>
  
सोहबत-ए-रिन्दा से वाजिब है हज़र<br>
+
सोहबत-ए-रिन्दां से वाजिब है हज़र<br>
 
जा-ए-मै अपने को खेंचा चाहिये<br><br>
 
जा-ए-मै अपने को खेंचा चाहिये<br><br>
  
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
किस क़दर दुश्मन है देखा चाहिये<br><br>
 
किस क़दर दुश्मन है देखा चाहिये<br><br>
  
अपनी रुस्वाई में क्या चलती है सइ<br>
+
अपनी रुस्वाई में क्या चलती है सअई<br>
यार ही हंगामा आरा चाहिये<br><br>
+
यार ही हंगामाआरा चाहिये<br><br>
  
 
मुन्हसिर मरने पे हो जिस की उमीद<br>
 
मुन्हसिर मरने पे हो जिस की उमीद<br>
 
नाउमीदी उस की देखा चाहिये<br><br>
 
नाउमीदी उस की देखा चाहिये<br><br>
  
ग़ाफ़िल इन मह तलअतों के वास्ते<br>
+
ग़ाफ़िल इन महतलअतों के वास्ते<br>
 
चाहने वाला भी अच्छा चाहिये<br><br>
 
चाहने वाला भी अच्छा चाहिये<br><br>
  
 
चाहते हैं ख़ूबरुओं को "असद"<br>
 
चाहते हैं ख़ूबरुओं को "असद"<br>
 
आप की सूरत तो देखा चाहिये<br><br>
 
आप की सूरत तो देखा चाहिये<br><br>

06:29, 26 दिसम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: गा़लिब

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

चाहिये अच्छों को जितना चाहिये
ये अगर चाहें तो फिर क्या चाहिये

सोहबत-ए-रिन्दां से वाजिब है हज़र
जा-ए-मै अपने को खेंचा चाहिये

चाहने को तेरे क्या समझा था दिल
बारे अब इस से भी समझा चाहिये

चाक मत कर जेब बे अय्याम-ए-गुल
कुछ उधर का भी इशारा चाहिये

दोस्ती का पर्दा है बेगानगी
मुंह छुपाना हम से छोड़ा चाहिये

दुश्मनी में मेरी खोया ग़ैर को
किस क़दर दुश्मन है देखा चाहिये

अपनी रुस्वाई में क्या चलती है सअई
यार ही हंगामाआरा चाहिये

मुन्हसिर मरने पे हो जिस की उमीद
नाउमीदी उस की देखा चाहिये

ग़ाफ़िल इन महतलअतों के वास्ते
चाहने वाला भी अच्छा चाहिये

चाहते हैं ख़ूबरुओं को "असद"
आप की सूरत तो देखा चाहिये