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विश्व के नीरव निर्जन में। | विश्व के नीरव निर्जन में। | ||
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जब करता हूँ बेकल, चंचल, | जब करता हूँ बेकल, चंचल, | ||
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मानस को कुछ शान्त, | मानस को कुछ शान्त, | ||
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होती है कुछ ऐसी हलचल, | होती है कुछ ऐसी हलचल, | ||
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हो जाता हैं भ्रान्त, | हो जाता हैं भ्रान्त, | ||
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भटकता हैं भ्रम के बन में, | भटकता हैं भ्रम के बन में, | ||
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विश्व के कुसुमित कानन में। | विश्व के कुसुमित कानन में। | ||
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जब लेता हूँ आभारी हो, | जब लेता हूँ आभारी हो, | ||
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बल्लरियों से दान | बल्लरियों से दान | ||
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कलियों की माला बन जाती, | कलियों की माला बन जाती, | ||
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अलियों का हो गान, | अलियों का हो गान, | ||
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विकलता बढ़ती हिमकन में, | विकलता बढ़ती हिमकन में, | ||
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विश्वपति! तेरे आँगन में। | विश्वपति! तेरे आँगन में। | ||
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जब करता हूँ कभी प्रार्थना, | जब करता हूँ कभी प्रार्थना, | ||
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कर संकलित विचार, | कर संकलित विचार, | ||
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तभी कामना के नूपुर की, | तभी कामना के नूपुर की, | ||
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हो जाती झनकर, | हो जाती झनकर, | ||
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चमत्कृत होता हूँ मन में, | चमत्कृत होता हूँ मन में, | ||
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विश्व के नीरव निर्जन में। | विश्व के नीरव निर्जन में। | ||
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00:17, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
विश्व के नीरव निर्जन में।
जब करता हूँ बेकल, चंचल,
मानस को कुछ शान्त,
होती है कुछ ऐसी हलचल,
हो जाता हैं भ्रान्त,
भटकता हैं भ्रम के बन में,
विश्व के कुसुमित कानन में।
जब लेता हूँ आभारी हो,
बल्लरियों से दान
कलियों की माला बन जाती,
अलियों का हो गान,
विकलता बढ़ती हिमकन में,
विश्वपति! तेरे आँगन में।
जब करता हूँ कभी प्रार्थना,
कर संकलित विचार,
तभी कामना के नूपुर की,
हो जाती झनकर,
चमत्कृत होता हूँ मन में,
विश्व के नीरव निर्जन में।