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"चूक / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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बिना बुलाए आया था प्यार,
अहंकार की बाँह में बाँह डाले
अपने पर मुग्ध
आँख उठा कर देखा भी नहीं
उसकी ओर।
सावन की फुहार की तरह
बरसा था आशीर्वाद
जेठ की घाम की तरह
अपने में तपते
शाप ही सहेजते रहे
छाँव को छूकर।
रचनाकाल : 1991, विदिशा