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"असर उसको ज़रा नहीं होता / मोमिन" के अवतरणों में अंतर

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रंज राहत-फिज़ा नहीं होता ।।   
 
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बेवफा कहने की शिकायत है,
 
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तो भी वादा वफा नहीं होता ।   
 
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जिक़्रे-अग़ियार से हुआ मालूम,
 
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हर्फ़े-नासेह बुरा नहीं होता ।   
 
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तुम हमारे किसी तरह न हुए,
 
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उसने क्या जाने क्या किया लेकर,
 
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दिल किसी काम का नहीं होता ।   
 
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नारसाई से दम रुके तो रुके,
 
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मैं किसी से खफ़ा नहीं होता ।   
 
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तुम मेरे पास होते तो गोया,
 
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जब कोई दूसरा नहीं होता ।   
 
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हाले-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर,
 
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हाथ दिल से जुदा नहीं होता ।   
 
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क्यूं सुने अर्ज़े-मुज़तर ऐ ‘मोमिन’
 
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सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता ।
 
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता ।

12:51, 20 दिसम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: मोमिन

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असर उसको ज़रा नहीं होता ।

रंज राहत-फिज़ा नहीं होता ।।


बेवफा कहने की शिकायत है,

तो भी वादा वफा नहीं होता ।


जिक़्रे-अग़ियार से हुआ मालूम,

हर्फ़े-नासेह बुरा नहीं होता ।


तुम हमारे किसी तरह न हुए,

वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता ।


उसने क्या जाने क्या किया लेकर,

दिल किसी काम का नहीं होता ।


नारसाई से दम रुके तो रुके,

मैं किसी से खफ़ा नहीं होता ।


तुम मेरे पास होते तो गोया,

जब कोई दूसरा नहीं होता ।


हाले-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर,

हाथ दिल से जुदा नहीं होता ।


क्यूं सुने अर्ज़े-मुज़तर ऐ ‘मोमिन’

सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता ।