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13:47, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

बतर्ज़ शमशेर

तुमने मुझे और गहरा

और पवित्र
और अनन्त बना दिया...
एक ही चम्पई धूप-सी

पृथ्वी के तमाम रंगों पर छा गई
मैं और भी हरा हो गया...

तुम्हारे होने की उजली चाँदनी में
पिघलने के बाद
मैं...

भोर की एक पीली इबारत से
धुन की तरह उठा

और उठता ही चला गया...