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"जाके लिए घर आई घिघाय / बिहारी" के अवतरणों में अंतर

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19:56, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण

जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी

आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी

ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी

वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी ।।