भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अंत / मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर }}...)
 
छो (अंत (मृत्यु-बोध) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर अंत / मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)
(कोई अंतर नहीं)

15:00, 1 जनवरी 2010 का अवतरण

समर —

अब कहाँ है ?

सफ़र —

अब कहाँ है ?


थम गया सब

बहता उछलता नदी-जल तरल,

जम गया सब —

नसों में रुधिर की तरह !


दर्द से

देह की हड्डियाँ सब

चटखती लगातार,

अब कौन

इन्हें दबाए

टूटती आख़िरी साँस तक ?

अँधेरे-अँधेरे घिरे

जब न कोई

पास तक !


लहर अब कहाँ

एक ठहराव है,

ज़िन्दगी अब —

शिथिल तार;

बिखराव है !