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"पेड़ / यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
छो (पेड़ / प्रयाग शुक्ल का नाम बदलकर पेड़ / यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
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18:25, 1 जनवरी 2010 का अवतरण
टकराता ही रहता है वह पेड़,
दीवारों से,
मकान की ।
लिए हुए हरापन, परत धूल की,
बूंदें बारिश की । किरणें, चाँदनी ।
और हवा
जो दिखती है सबसे
पहले उस पर । टिकती हैं आँखें
दुखी-सुखी ।
देखो, देखो
पेड़ की रगों में भी बह रही
है वह कथा
जो इस वक़्त
तुम रहे हो सोच ।