भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पहली बार / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:55, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
पहली बार
इस तरह देखा तुमने।
पहली बार
तुम्हारी आँखों में
इस तरह खड़ा पा रहा हूँ खुद को मैं।
न आँसू के साथ बह रहा हूँ
न घुल रहा हूँ आँखों की नमी में।
तुम्हारी आँखों में
अपना क़द बड़ा लग रहा है मुझे
बड़ा लग रहा है अपना होना।
कैसे सम्हाल पाऊँगा मैं
अपने होने का यह बड़प्पन
तुम्हारी निगाहों के भीतर
जन्म ले रहा है जो?
तुम्हारी आँखों के बाहर
कहीं नहीं हूँ मैं इस तरह
इस तरह देखा है तुमने पहली बार।
रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा