भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झुंझलाई लडकी के सवाल / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:19, 4 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
पता नहीं
कब तक सहना पड़ेगा
मूर्खता का दुःख?
सरलता का संकट
झेलना पड़ेगा कब तक?
कब तक सहेजना पड़ेगा
सहजता का जंजाल...?
पता नहीं
कब तक बनाते रहेंगे लोग मूर्ख?
सुननी पड़ेगी कब तक
हर किसी की ऊल-जुलूल बात?
कब तक उलझा रहेगा
शब्दों के उलट-फेर में
जीवन?
कब तक चलता रहेगा यह सब
यों ही?
पता नहीं। पता नहीं।। पता नहीं।।।
रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा