"मुबहम बनी रहेगी यूँ ही दो जहाँ की बात / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी" के अवतरणों में अंतर
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सुनते कहाँ हैं अहले-चमन बाग़बाँ की बात | सुनते कहाँ हैं अहले-चमन बाग़बाँ की बात | ||
11:38, 4 जनवरी 2010 का अवतरण
मुबहम<ref>अस्पष्ट</ref> बनी रहेगी यूँ ही दो जहाँ की बात
जब तक समझ न पाए कोई दरम्याँ <ref>बीच की</ref> की बात
हैं एक ही फ़साने की कड़ियाँ जुदा-जुदा
मेरी जबीं<ref>माथा</ref> की की हो कि तेरे आस्ताँ<ref>दहलीज़</ref> की बात
चर्चा है किसका आज लबे-कायनात पर
किससे ये दिल का दर्द बनी कुल जहाँ <ref>समग्र संसार</ref> की बात
हैं हसरतों<ref>कामनाओं </ref> के दाग़ रुख़े-माहताब<ref>चाँद के माथे पर</ref> पर
पहुँची कहाँ से चल के कहाँ तक कहाँ की बात
बिखरेंगे ख़ुदफ़रेबी-ए-हस्ती के तारो-पूद
बन कर रहेगी ज़िन्दगी वहमो-गुमाँ की बात
फिरते हैं सीना चाक लिए अपना-अपना ग़म
सुनता नहीं कोई भी कोई भी ग़मे-दोस्ताँ की बात
तिनके क़फ़स के रोने लगे मिल के ज़ार-ज़ार
किसने कही है उन से मेरे आशियाँ की बात
फेरी निगाह उसने भी तक़दीर की तरह
इतनी कहाँ थी तल्ख़<ref>चुभने वाली</ref> दिले-नातवाँ <ref>क्षीण हृदय</ref>की बात
वैसे तो ख़ैर और भी आलम हैं दिल-नवाज़
लेकिन अजब है आलमे-दर्दे-निहाँ की बात
क्यों तीरगी के डर से सितारे हैं माँद-माँद
निकलेगा चाँद होगी शबे-कामराँ की बात
ऐ दोस्त! बेरुख़ी तेरी इक बोझ थी मगर
छोटे-से दिल ने थाम ली कोहे-गराँ <ref>भारी पर्वत</ref>की बात
मफ़हूम<ref>तात्पर्य, अभिप्राय,उद्देश्य</ref> ज़िन्दगी का है कुछ ख़्वाब कुछ ख़्याल
तावील ज़िंदगी है बहारो-ख़िज़ाँ की बात
इक-इक कली चमन की फ़सूँकार <ref>जादूगर</ref>बन गई
जादू जगा गई किसी जादू-बयाँ की बात
होता है मेरी ज़िक्र तो करते हैं लोग याद
बेहतर है मुझसे भी मेरे नामो-निशाँ की बात
लाज़िम नहीं कि अपना भी हो मुद्दआ वही
करने को हम भी करते हैं सूद-ओ-ज़ियाँ <ref>लाभ-हानि</ref>की बात
ना-आश्ना-ए-बर्क़े-नतायज<ref>परिणामों के वज्रपात
से अपरिचित</ref> से बेनियाज़<ref>अनभिज्ञ</ref>
सुनते कहाँ हैं अहले-चमन बाग़बाँ की बात
तब तक घुटा-घुट-सा रहेगा ज़मीं का दिल
जब तक समझ न पाएगी ये आसमाँ की बात
उभरे रहो ख़याल में माअनी के हादसो !
शायद मुझे न याद रहे रफ़्तगाँ की बात
हर चन्द नागवार लगे तुमको दोस्तो!
सुन लो कि काम आएगी पीरे-मुग़ाँ की बात
जब अर्सा-ए-हयात है अहले-ज़मीं पे तंग
ऐसे में क्या सुनेगा कोई आसमाँ की बात
ऐ ‘चाँद’ इस जहान में रहना तो है ज़रूर
अच्छी लगे लगे न लगे इस जहाँ की बात