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"प्यार और युद्ध / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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नहीं किया जिसने प्यार
युद्ध नहीं कर सकता है वह
युद्ध में जाती है जान
जान देने की तमीज़ सिखाता है प्यार
युद्ध में घायल होता है शरीर
घाव की गहराई बताता है प्यार
युद्ध में जन्म लेता है जीत का विचार
विचार को ज़िन्दा रखता है प्यार
युद्ध है उत्सर्ग का आख़िरी त्यौहार
त्यौहार का आयोजन करता है प्यार
प्यार नहीं कर सकता है जो
युद्ध नहीं कर सकता है वह।
रचनाकाल : 1992 विदिशा