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बरसों से बंद पड़ी हवेली में
 
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कोई नहीं आया था
 
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एक दिन आई आंधी
 
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उसके साथ आई धूल
 
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सूखे हुए पत्ते और तिनके और काग़ज़ के टुकड़े
 
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पूरी हवेली एक अजीब ताज़गी से भर गई।
 
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10:46, 5 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

बरसों से बंद पड़ी हवेली में
कोई नहीं आया था
एक दिन आई आंधी
उसके साथ आई धूल
सूखे हुए पत्ते और तिनके और काग़ज़ के टुकड़े
पूरी हवेली एक अजीब ताज़गी से भर गई।